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आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
तारे फ़लक से तोड़ के लाया है भला कौन !
प्यार में यूँ भी जिए लोग ग़लतफ़हमी में !!
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !!
वक़्त ठहरा है कहाँ कब मौत ने मोहलत दी है !
'नीर' जीवन ही गंवा बैठे ग़लतफ़हमी में !! ................................................
31 टिप्पणियां:
तारे फ़लक से तोड़ के लाया है भला कौन !
प्यार में यूँ भी जिए लोग ग़लतफ़हमी में !!
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
Kamaal kee panktiyan hain!
तारे फ़लक से तोड़ के लाया है भला कौन !
प्यार में यूँ भी जिए लोग ग़लतफ़हमी में !!
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
वाह , बहुत खूबसूरत गज़ल ..यूँ तो सारी ज़िंदगी ही गलतफहमी में ही बीत जाती है ..
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
bahane banate aur dhoondhte rahe galatfahmi me
वाह गहरी बात...सुन्दर अंदाजे बयां..
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....वाह !!!!
bahut khoob likha apne
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज
वक़्त ठहरा है कहाँ कब मौत ने मोहलत दी है !
'नीर' जीवन ही गंवा बैठे ग़लतफ़हमी में !!
क्या बात है।
बहुत खूब सर!
सादर
खूबसूरत!
ग़लतफ़हमी में तो ये दुनिया ही चल रही है फिर हमारी-आपकी क्या बिसात?
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !!
बेहतरीन ...... खूब कहा
..इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है ! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले !
खूबसूरत अलफ़ाज़ से शुरुआत ,...तो है ही ,ग़ज़ल भी उम्दा है
आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !
वक़्त ठहरा है कहाँ कब मौत ने मोहलत दी है !
'नीर' जीवन ही गंवा बैठे ग़लतफ़हमी में !
गलतफ़हमी के विचार को सही पकड़ा है आपने ....
...
आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
beautiful...
क्या बात है ...बढ़िया...
सुन्दर रचना...
सादर बधाई
sach kaha galatfehmi me tamam umr tabaah ho jati hai.
बहुत खूब गज़ल कही है आपने ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत सुन्दर !
जीवन में कुछ भ्रमों का बने रहना अच्छा ही होता है! सुंदर भाव!
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !!
बहुत खूब!
बहुत खूब!
मारने को हैं उतारु कुछ गलतफहमियाँ मगर
अब तलक ज़िंदा भी तो हैं गलतफहमी में.
खूबसूरत अशआर ने दिल लूट लिया.
♥
प्रिय बंधुवर निर्झर'नीर'जी
सस्नेहाभिवादन !
आपकी अन्य रचनाओं की तरह प्रस्तुत रचना भी प्रभावित करती है-
तारे फ़लक से तोड़ के लाया है भला कौन !
प्यार में यूं भी जिए लोग ग़लतफ़हमी में !!
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
वाह जी वाऽऽह… ! क्या कहने है …
बहुत ख़ूब !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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"कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में ...
बहुत खूब गज़ल है..
→Ħ@r!§Ħ ji said ..
आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
अच्छा हैं नीर साहब... यथार्थ भी
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
इस बात मैं दम हैं ...काश की उम्र रहते ये बात सभी की समझ मैं आ जाये
अंतिम अशर में आशा का दामन थामे रखने की गुजारिश हैं मित्र ...
जिंदगी मिलती हैं बड़े रहम-ओ-करम से 'नीर'
अब न ठुकरायेगे,, किसी भी ग़लतफ़हमी में
आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
बहुत अच्छी लगी आपकी प्रस्तुति.
गलतफहमी को बहुत सुंदरता से उकेरा
है आपने.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बहुत खूब नीर भाई , हमेशा की तरह मन को छूने वाली रचना |
बहुत सुन्दर प्रविष्टि.। मेरे नए पोस्ट 'आरसी प्रसाद. सिंह" पर आकर मुझे प्रोत्साहित करें ।.बधाई ।
waah, bahut khoob, har sher bahut kamaal. sach hai galatfehmi mein kya kya na ho jata hai aur kya kya na ho sakta hai...
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !!
bahut khoob guru ji
bahut sundar
आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
waah.
waah bahut hi achha likha hai....
ye galatfehmi kabhi jeene ki vajah banti hai to kabhi sab chheen leti hai.
shubhkamnayen
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