बहुत दिन बाद एक कोशिश
धन की खातिर लोग यहाँ
सुख-चैन नींद, खोते देखे !
दौलत-शौहरत पाकर भी
कुछ लोग यहाँ, रोते देखे !
उल्लू जैसी हो गयी फितरत
रात जगे दिन सोते देखे !
इंसानों की जात ना पूछो
मन मैला तन धोते देखे !
के गैरों का गिला करूँ, जब
अपने ही कांटे बोते देखे !
मूल्य रहे ना मान रहा, बस
रिश्तों के गट्ठर ढोते देखे !देखे पीर फ़कीर 'नीर' सब
नेता और अभिनेता देखे !
गद्दी खातिर बेच दिया सब
देश के टुकड़े होते देखे !!
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7 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा ...यथार्थ को चित्रित करती पंक्तियाँ .....
बहुत खूब ...
शुभकामनायें आपको !
insaani fitrat ko bakhubi darshaya hai.
shubhkamnayen
bahut khub neer sahab, aaj ke parivesh ka katu saty.....shubhkamnayen
देखो इनकी फ़ितरत यारों,
बगुला-भगत जमे सब बैठे!
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
waah...great creation...
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