गुरुवार, 9 मार्च 2017

अपनी-अपनी ढपली


 सबकी अपनी-अपनी ढपली 
सबके अपने-अपने राग
किसे पड़ी है तेरे गम की
कौन सुनेगा तेरे मन की
तन्हाई में रो ले प्यारे
दाग जिगर के धो ले प्यारे 
टूटकर गिरने से पहले 
ख़ाक में मिलने से पहले 
इस आसमाँ को चूम ले  
दम-मस्त होकर झूम ले ।।

 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
"आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

जयंत - समर शेष ने कहा…

Nirjhar bhai....
Ati sundar.. Aanand aa gaya.
Ye to bahut badhiya hain
"तन्हाई में रो ले प्यारे
दाग जिगर के धो ले प्यारे "

Waah waah waah....

Zee Talwara ने कहा…

badi hi sunder line likhi hai apne, thanks, Free me Download krein: Mahadev Photo