बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

क्या बला है इश्क यारो ...

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माँ भारती की वेदना का हाल हमसे पूछ लो !
बोलते पत्थर है ये इन खंडहरों से पूछ लो !!


थी बहारें जिस चमन में , है आज वो उजड़ा हुआ !
उजड़े गुलशन का सबब इन आँधियों से पूछ लो !!


हर कदम पर अब यहाँ हैवानियत का नांच है !
इंसानियत कैसे मरी ये आसमां से पूछ लो !!


ना रही खुशबू हवा में ना गगन में चांदनी !
लुप्त हो गए क्यूँ ? परिंदे ये शज़र* से पूछ लो !!


ना रही अब प्रीत जग में ना वफ़ा के मायने !
क्या बला है इश्क यारो दिलजलों से पूछ लो !!


अपनी सारी उम्र तो बस बेखुदी में कट गयी !
मंजिलों का तुम पता इन रास्तों से पूछ लो !!


क्या बताएं ? नीर का भी रंग अब बदला सा है !
हो गयी गंगा भी मैली उस शहर से पूछ लो !!

* शज़र -पेड़

6 टिप्‍पणियां:

E-Guru Rajeev ने कहा…

धन्यवाद शज़र की हिन्दी लिखने का नहीं तो हम तो लटके ही रह जाते. बहुत ही अच्छी रचना है.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

क्या बताएं ? नीर का भी रंग अब बदला सा है !
हो गयी गंगा भी मैली पर्वतों से पूछ लो !!
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bahut hi achha likha hai aapne

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

हर कदम पर अब यहाँ हैवानियत का नांच है !
इंसानियत कैसे मरी ये आसमां से पूछ लो !!
सुंदर कविता आपका स्वागत है

shama ने कहा…

Kavitakaa har ek shabd mayne rakhta hai...dilse utre alfaaz, seedhe kagazpe utar gaye hain!
Shubhkamnayon sahit swagat hai...
Aao ham milke insaaniyat kaa swagat karen...meree kuchh kavitaye, 2007 ke June/july archives me hain...padhenge to mujhe khushee hogee.Waise mai na to lekhika hun, na kaviyatri...

रंजना ने कहा…

वाह.........अद्भुद रचना है.बहुत बहुत सुंदर.नाकाबिले तारीफ़.
आपके ब्लॉग को मैंने अपने फेवरिट में एड कर लिया है अब हमेशा पढूंगी.
बहुत सुंदर ऐसे ही भावपूर्ण लिखते रहें.माँ शारदा आप पर सदा सहाय रहें.

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत खूब. हर शेर बहुत कमाल और ख़ास. बधाई नीर.