मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008

शर्म नहीं आती तुम्हें !

शर्म नहीं आती तुम्हें
चले आते हो बेसबब,बेवक्त
बिन बुलाये मेहमां की तरह
कम-स-कम आने से पहले
कुछ ख़बर तो कर देते !

जानता हूँ ये प्यार है जो खींच लाता है
ऐसा भी नही की मुझे तुझसे प्यार नही
मुझे याद है वो तनहाइयों में तेरा साथ
जो भी गुजरी है तेरे पहलू में मेरी रात !

मुझे अच्छा नहीं लगता ये बेबुनियाद लोग
तुम्हें साथ देखकर मुझपे उंगलियाँ उठायें
मेरी भी इज्जत है इस बिखरे हुए समाज में
क्या तुम्हें खुशी होगी, कोई मुझपे उंगली उठायें !

नहीं ना, मुझे भी नही होती
इसलिए ! आगे से ध्यान रखना
ना आना बेसबब,बेवक्त
कोशिश करना रात को आने की !

मुझे अच्छा लगता है अंधेरों में तेरा साथ
रात में आने का किसी को पता भी नहीं चलता
या फ़िर आना तुम चाँदनी रातों में
चांदनी में भी चाँद के सिवा कोई नहीं देखता

हाँ तुम सावन की रिमझिम में जरूर आना
बरखा की बूंदों के साथ जब तुम बहते हो
तब भी ज़माने की नज़र से दूर रहते हो
ए-आसूँ ,तुम आना,बर्खा में जरूर आना !

क्योंकि ! जब भी तुम आते हो
तुम्हारे सथ लिपटकर
थोड़ा सा दर्द बह जाता है
ज़मी हुई गर्द बह जाती है
मन भी हल्का हो जाता है
आँखें भी उजली हो जाती है !!

6 टिप्‍पणियां:

Manuj Mehta ने कहा…

namastey nirjhar
bahut khoob likha, aapki tone pasand aayi. shabd ache chune hai, kavita ka flow bahut hi aacha ban pada hai, badhai swekaren

शोभा ने कहा…

निर्झर जी,
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई स्वीकारें.

बेनामी ने कहा…

bahut khub ansoon bin bulaye hi aae hai

Unknown ने कहा…

निर्झर जी बहुत खूब लिखा आपने । अच्छी रचना

ज्ञान ने कहा…

अच्छी रचना

निर्झर'नीर ने कहा…

मनुज मेहता jii
शोभा jii
mehek jii
neeshoo jii
ज्ञान jii

आप सब की बधाँई सर आँखौं पर ..

aapne hosla_afzaaii kii ye meri khush_nasiibii hai.