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दिल के सागर में
जब-जब आते है
ज़ज्बातों के झंझावात
तब-तब उठती हैं
बेबसी और वेदना की
ऊँची-ऊँची लहरें
सुनामी की तरह
जिन्हें ये कमज़र्फ आँखें
चाहते हुए भी
रोक नहीं पाती
और बहा देती हैउस नमक को
जो जमा किया था
वक़्त की छलनी से
दर्द को छानकर
दिल की तलहटी में.
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11 टिप्पणियां:
Bahut,bahut sundar!
जज्बातों के झंझावात भिगो जाते हैं हर मन को ... और आंसू उमड़ आते हैं ...
बहुत ही सुंदर रचना है ,पहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ,कई रचनाएँ पढ़ी ,बहुत ही उम्दा लिखते है आप....उम्मीद है फिर जरुर आना होगा इस ब्लॉग पर....
गहन वेदना को उकेरती ये कमज़र्फ आँखे ..बहुत खूबसूरत नज़्म
आपके जज़्बातों के झंझावात ने वाकई सुनामी ला दी है. बहुत ही सुंदर रचना है यह. बधाई.
सचमुच चिंता का विषय है. सुंदर कविता बधाई.
अन्दर की सुनामियों को कोई देख नहीं पाता , चट्टानों सा हौसला भी कई बार बहने लगता है ... चलना है तो बांधना ही है
बहुत सुन्दर ..
जिन्हें ये कमज़र्फ आँखें
चाहते हुए भी
रोक नहीं पाती
और बहा देती है
उस नमक को
जो जमा किया था
वक़्त की छलनी से
दर्द को छानकर
दिल की तलहटी में.
वाह ...बहुत सुन्दर
वाह...यह भी लाजवाब...
क्या खूब मंज गयी है तुम्हारी लेखनी...भाव को सीधे ह्रदय तक पहुंचा देती है...
बिम्बों की ख़ूबसूरती
बहुत भावपूर्ण
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